नर्स
अति संवेदनशील
हिरदय रोग कक्ष
सफेद कोट में घूम रहे
हिरदय रोग दक्ष
मशीनों से घिरे
लगभग बीस से अधिक रोगी
हिरदय रोग से गरसित भोगी
बीचों बीच
एक मेज़ और एक कुर्सी
दूध से उजले
परिधान में लिपटी
उस कुर्सी पर बेठी थी एक नर्स
प्रत्येक
रोगी के कष्ट से
वाकिफ है नर्स
दृष्टी के दायरे में
सभी रोगी
और उनकी साँस से
उनके दर्द को पहचानते
नर्स के कान
बिस्तर की चादर
दवा और इंजेक्शन
खतरे को भांप
डाक्टर को पुकार
रोगी को सांत्वना
सहलाना व समझाना
माता बहन बेटी पत्नी व मित्र
सभी कण दायित्व
निभाती है नर्स ।
बीसों रोगियों की देखभाल
इस बेड से उस बेड तक
भागमभाग
स्वाभाविक है थकान
घर पति बच्चे
और उनकी आवश्यकताओं को भूल
होठों पर लिए मुस्कान
अपने कर्तव्य निभाती है नर्स
हिरदय रोगियों के झुंड में
क्या किसी ने कभी
की है कोशिश ये जानने की
की नर्स के सीने में भी
होता है एक हिरदय
जिसमे असहनीय अवर्णनीय
पीरा को छिपाती है नर्स
जिसका उपचार
न दवा और इंजेक्शन
न ई सी जी न आक्सीजन
अपनी पीरा को भूल
सबक सेवा का सिखाती है नर्स
हिरदय रोगियों में यदि
मिल गया कोई मनचला
रूप दुर्गा का कर धारण
कहर बही डआती है नर्स
रचना २३/१२/१९९८
हाटी शब्द की उत्पत्ति के बारे में कहा जाता है कि अपनी आवश्यक वस्तुओं की खरीददारी के लिए, पहले यहां के लोग (पूरे पूरे गांव के लोग)वर्ष में एक या दो बार, किसी हाट (बाजार) में समूह बनाकर जाते थे। समूह के रूप में जाने के कारण धीरे धीरे ये हाटी नाम से प्रसिद्ध हो गए। मूलत: यह कनैत ही हैं। जौनसार बावर के लोगों से इनका रोटी बेटी का संबंध है। तीन साल से अधिक समय तक मैंने इनके क्षेत्र का भ्रमण किया तथा गहन अध्यन करने के बाद हिमाचल गिरिपार का हाटी समुदाय नाम से एक पुस्तक लिखी।
Sunday, January 17, 2010
इससे अधिक में तुम्हें नही मानता
इससे अधिक में तुम्हें नही मानता
ईश्वर
तुम हो
तुम कुछ तो हो ,
कयोंकि
तुम्हारे भय का अहसास
मेरी रगों में समाया है
तुम अस्तित्व विहीन नही हो
तुम्हारा कुछ अस्तित्व तो है
इसे में मानता हूँ ।
पर तुम्हे
दीप दिखाना
घंटी बजाना
और रिझाना
मेरे वश में नहीं
मेरे लिए इतना ही बहुत है
कि तुम हो
सदा मेरे आसपास हो
तुम्हारी मौजूदगी का अहसास
मुझे सदा अपने इर्द गिर्द
महसूस होता है ।
में तुम्हारा हूँ
तुम मेरे हो
सदा के लिए
इससे अधिक
में तुम्हें नही मानता ।
.........पवन बख्शी
रचना २६/०५/०५
वे आतंकवादी न थे
नित अपनी पीठ पर
अपनी दूकान को लादे
वह गाँव से शहर आता है
हो तेज़ धूप
या बरखा की फुहार हो
विरासत में मिला
उसकी उम्र से बडा
राहत कुछ तो देता है
उसका जो छाता है।
पत्नी की बीमारी
बेटे की शिक्षा
पल पल बढती
मुनिया की शादी की चिंता
या फिर आज शाम का राशन
सब चिंताओं को
मस्तिष्क में समेटे
चमरे की कतरनों के बीच
घिरा बैठा वह बूढा मोची
ज़र्ज़र हुए तन की
शेष बची ताकत को
एक जूते को
चमकाने में लगाता है
और चमकते जूते को देख
सोचता है
इस एक जोडी जूते के दाम
मेरी दूकान की कीमत से जयादा है
क्या हो रहा है इस शहर में
कौन नेता है कौन अधिकारी
किसने किसको लूटा
की किसने, किससे नोचा खोची
इन सब से बेखबर
अपने काम में मग्न
वह बूढा मोची।
उस समय रह गया हतप्रभ
जब उसकी दूकान (पेटी) को
किसी ने सड़क आईआर फ़ेंक दिया
वे आतंकवादी न थे
थे वो अतिकर्मन के दुश्मन
महापालिका के कारिंदे।
अपने अरमानो का ज़नाज़ा
अपनी आँखों से
होगा देखना शायद
इसकी उसे कल्पना भी न थी।
पुनः अरमानो को अपने
संजोने के लिए
अपनी दुनिया फिर से सजाने के लिए
एक एक कतरन को
बीन रहा था वो मोची।
वो सोच रहा था
उसकी आँखों में आंसू
भरे हुए थे
एक आह खींच कर देखा उसने
महलों वाले
सडकों तक बढे हुए थे
नित अपनी पीठ पर
अपनी दूकान को लादे
वह गाँव से शहर आता है
हो तेज़ धूप
या बरखा की फुहार हो
विरासत में मिला
उसकी उम्र से बडा
राहत कुछ तो देता है
उसका जो छाता है।
पत्नी की बीमारी
बेटे की शिक्षा
पल पल बढती
मुनिया की शादी की चिंता
या फिर आज शाम का राशन
सब चिंताओं को
मस्तिष्क में समेटे
चमरे की कतरनों के बीच
घिरा बैठा वह बूढा मोची
ज़र्ज़र हुए तन की
शेष बची ताकत को
एक जूते को
चमकाने में लगाता है
और चमकते जूते को देख
सोचता है
इस एक जोडी जूते के दाम
मेरी दूकान की कीमत से जयादा है
क्या हो रहा है इस शहर में
कौन नेता है कौन अधिकारी
किसने किसको लूटा
की किसने, किससे नोचा खोची
इन सब से बेखबर
अपने काम में मग्न
वह बूढा मोची।
उस समय रह गया हतप्रभ
जब उसकी दूकान (पेटी) को
किसी ने सड़क आईआर फ़ेंक दिया
वे आतंकवादी न थे
थे वो अतिकर्मन के दुश्मन
महापालिका के कारिंदे।
अपने अरमानो का ज़नाज़ा
अपनी आँखों से
होगा देखना शायद
इसकी उसे कल्पना भी न थी।
पुनः अरमानो को अपने
संजोने के लिए
अपनी दुनिया फिर से सजाने के लिए
एक एक कतरन को
बीन रहा था वो मोची।
वो सोच रहा था
उसकी आँखों में आंसू
भरे हुए थे
एक आह खींच कर देखा उसने
महलों वाले
सडकों तक बढे हुए थे
Saturday, January 16, 2010
हिमांचल का एक ऐसा समुदाय है जो जनजाति की विशेषताएं
रखते हुए भी जनजाति के रूप में स्वीकार नहीं हो पाया।
जबकि यह उतरांचल के जोंसार बाबर समुदाय से सम्बंधित हैं । उनसे इनके रोटी बेटी के सम्बन्ध हैं ।
मैंने जनुअरी २०१० के दूसरे सप्ताह में वहां एक सप्ताह शर्ली गाँव में निवास किया । मैंने वहां इस समुदाय की पीरा का बहुत गहराई से अध्यन किया ।
सबसे पहले तो मैंने यह निर्णय लिया की मैं इन्हें अपना मानकर एक किताब के माध्यम से इनके दर्द को दुनिया के सामने लाऊँ ।
दूसरा यह कि अपने बचे हुए कार्यों को जल्दी निपटा कर मैं अपना शेष जीवन
इस समुदाय के उत्थान में व्यतीत कर दूंगा ।
ईश्वर मुझे इस काम को करने कि शक्ति तथा इस समुदाय का प्रेम दे ।
पवन बख्शी
रखते हुए भी जनजाति के रूप में स्वीकार नहीं हो पाया।
जबकि यह उतरांचल के जोंसार बाबर समुदाय से सम्बंधित हैं । उनसे इनके रोटी बेटी के सम्बन्ध हैं ।
मैंने जनुअरी २०१० के दूसरे सप्ताह में वहां एक सप्ताह शर्ली गाँव में निवास किया । मैंने वहां इस समुदाय की पीरा का बहुत गहराई से अध्यन किया ।
सबसे पहले तो मैंने यह निर्णय लिया की मैं इन्हें अपना मानकर एक किताब के माध्यम से इनके दर्द को दुनिया के सामने लाऊँ ।
दूसरा यह कि अपने बचे हुए कार्यों को जल्दी निपटा कर मैं अपना शेष जीवन
इस समुदाय के उत्थान में व्यतीत कर दूंगा ।
ईश्वर मुझे इस काम को करने कि शक्ति तथा इस समुदाय का प्रेम दे ।
पवन बख्शी
हिमांचल का एक ऐसा समुदाय है जो जनजाति की विशेषताएं
रखते हुए भी जनजाति के रूप में स्वीकार नहीं हो पाया।
जबकि यह उतरांचल के जोंसार बाबर समुदाय से सम्बंधित हैं । उनसे इनके रोटी बेटी के सम्बन्ध हैं ।
मैंने जनुअरी २०१० के दूसरे सप्ताह में वहां एक सप्ताह शर्ली गाँव में निवास किया । मैंने वहां इस समुदाय की पीरा का बहुत गहराई से अध्यन किया ।
सबसे पहले तो मैंने यह निर्णय लिया की मैं इन्हें अपना मानकर एक किताब के माध्यम से इनके दर्द को दुनिया के सामने लाऊँ ।
दूसरा यह कि अपने बचे हुए कार्यों को जल्दी निपटा कर मैं अपना शेष जीवन
इस समुदाय के उत्थान में व्यतीत कर दूंगा ।
ईश्वर मुझे इस काम को करने कि शक्ति तथा इस समुदाय का प्रेम दे ।
पवन बख्शी
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