जौनसार बावर को जनजाति घोषित किये जाने के बाद हाटी समुदाय के साथ उपेक्षा क्यों
सन 1953 के भारत सरकार के अनुसूचित जनजाति सम्बन्धी कमीशन की रिपोर्ट में पन्ना २२४ पर जनजातियों के निम्नलिखित लक्षण बताय गए हैं.
जनजातियों के विषय में इस तथ्य से ही जानकारी हासिल की जाती है की वे पहाड़ों के दूर दराज इलाकों में रहते हैं,और जहाँ वे मैदानों में भी रहते हैं, वहां भी उनका जीवन अलग तथा कटा हुआ होता है. उनका अस्तित्व समाज की मुख्य धारा से अलग रहता है. जनजातियों के लोग किसी भी धरम के हो सकते हैं. उनकी जीवन शैली के आधार पर ही उन्हें अनुसूचित जनजाति में गिना जाता है. हिमाचल के गिरिपार क्षेत्र के निवासियों को हाटी कहा जाता है. ये हाटी समुदाय भी कहलाता है.
गिरिपार के यह क्षेत्र अनुसूचित जनजाति के रूप में स्वीकार किये जाने की सभी नियम और शर्तों को पूरा करता है.
जिस प्रकार उत्तरांचल का जौनसार बावर इलाका अपनी विशष्ट पहचान रखता है,
उसी प्रकार हाटी समुदाय का गिरिपार का यह क्षेत्र भी अपनी विशष्ट पहचान रखता है.
उसी प्रकार हाटी समुदाय का गिरिपार का यह क्षेत्र भी अपनी विशष्ट पहचान रखता है.
सामजिक, आर्थिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और पिछ्ढ़ेपन में ये किसी प्रकार भी जौनसार बावर अलग नहीं हैं.
जो रीति रिवाज़, उत्सव, पहरावा और धरम जौनसार बावर के हैं, वही तो हाटी समुदाय के हैं.
इन दोनों क्षेत्रों के लोगों में आज भी आपस में वैवाहिक सम्बन्ध होते हैं. उनका आपस में दायेचारा भायेचारा का सम्बन्ध है.
इन लोगों का आपस में रोटी बेटी का सम्बन्ध है.
दोनों समुदायों में आज भी बाल विवाह तथा बहुपति प्रथा पाई जाती है.
फिर हाटी समुदाय के गिरिपार के इस क्षेत्र की उपेक्षा क्यों.
इन्हें जनजाति के रूप में स्वीकार क्यों नहीं किया जाता ?
इन्हें जनजाति के रूप में स्वीकार क्यों नहीं किया जाता ?
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